जिस देश की नींव रखी उसने
दी जिसने क्रांति की परिभाषा
उस देश पे मिटने वालों में
दिखती नहीं कल की अभिलाषा
क्या वजह है कि वो कहते हैं
इस देश में अब कुछ रहा नहीं
जब लुटने लगी थी आबरू
क्यों किसी ने कुछ भी कहा नहीं
चुप खड़े हैं सब ये सोचते हैं
कि बाकी क्यों चुप रहते है
जब बात उठे इल्ज़ामों की
अगले को दोषी कहते हैं
होकर उस कल पे न्योछावर
लिखी जिन्होंने नयी कहानी
ये देख निराशा उन्हें मिली
कि व्यर्थ गयी हर कुर्बानी
किस बात है अब अकड़ बची
सब कुछ तो अपना बिखर गया
हम सोच के फिर क्यों रोते हैं
कल का हर सपना किधर गया
थी जिनके लिए ये कुर्बानी
वो खुद में अक्सर लड़ते हैं
जब बात उठे इस देश की फिर
मतलब की सोच में सड़ते हैं
जनहित से पहले अपना हित
ये उसूल अब दिखता है
है जिसको अधिकार मिला
वो इतिहास को लिखता है
ये उसूल भी बदलेगा
जब नयी सोच का वस्त्र मिले
अपना ये कल फिर संवरेगा
जब अधिकारों का अस्त्र मिले
संग मिलकर कल की सुबह की
सोच में अब हम पड़ते हैं
लेकर अधिकारों का तर्कश
अपने मकसद पे अड़ते हैं
.jpg)
.jpg)

.jpg)

.jpg)

No, its not animated. Its made on the paint-brush platform, used by me. It involved the use of curves and, obviously, my imagination.

.jpg)
.jpg)





















