उन बातों को हम भूल गए
जिन बातों से तकरार बढ़ी
उन दीवारों को तोड़ गए
जो सबके थी बीच खड़ी
कब तक रखें उन बातों को
छुपा के अपने दिल में हम
जिनसे हम कोसों दूर रहे
जिसने की सबकी आँखें नम
क्या खोया सब भूल के हम
लें एक दूजे की बाहें थाम
भुला के सारी नफरत को
एक नयी सुबह को करें सलाम
जो लड़े कभी हम मजहब पे
एक दूजे का खून बहा
धरती रोई फिर सदियों तक
कल जो ये लहू लुहान रहा
जो पास थी अपने वो दौलत
उसकी न हमको कदर रही
उनसे हम दिलों को जीत सकें
ऐसी न हमको खबर रही
ढूढ़ के लायें वो दौलत
चाहो हो जो भी अंजाम
भुला के सारी नफरत को
एक नयी सुबह को करें सलाम
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