Tuesday, September 11, 2012

ये देश है न जागीर तेरी

कर दे तू खड़ी दीवारों को 
या डाल दे पांवों में ज़ंजीरें
चुनवा दे तू दीवारों में 
फिर भी हम लांघेंगे ये लकीरें 
पहुंचा हूँ मैं मीलों आगे 
जब से थी ये आग़ाज़ मेरी 
दफ़ना भी दे कोसों नीचे 
न थमेगी ये आवाज़ मेरी 

जिंदा हैं जब ये उम्मीदें
फिर टूटेगी ज़ंजीर तेरी
तू रोक मुझे न पायेगा
ये देश है न जागीर तेरी 

इसे खून पसीने से सींचा
आजादी के रखवालों ने
तेरे सोये ईमान को अब
कुरेदा है चंद सवालों ने
अब रोक सके तू कदम मेरे
ऐसी न है औकात तेरी
उम्मीद है मेरी क़ुर्बानी
कभी बनेगी फिर सौग़ात मेरी

इस धरती पर है दिखती
कल की उजली तस्वीर मेरी

इस देश पे मैं क़ुर्बान
ये देश है न जागीर तेरी

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