Tuesday, October 30, 2012

अपने मकसद पे अड़ते हैं

जिस देश की नींव रखी उसने
दी जिसने क्रांति की परिभाषा  
उस देश पे मिटने वालों में  
दिखती नहीं कल की अभिलाषा 
क्या वजह है कि वो कहते हैं 
इस देश में अब कुछ रहा नहीं 
जब लुटने लगी थी आबरू 
क्यों किसी ने कुछ भी कहा नहीं

चुप खड़े हैं सब ये सोचते हैं  
कि बाकी क्यों चुप रहते है  
जब बात उठे इल्ज़ामों की 
अगले को दोषी कहते हैं 

होकर उस कल पे न्योछावर
लिखी जिन्होंने नयी कहानी 
ये देख निराशा उन्हें मिली
कि व्यर्थ गयी हर कुर्बानी
किस बात है अब अकड़ बची
सब कुछ तो अपना बिखर गया
हम सोच के फिर क्यों रोते हैं 
कल का हर सपना किधर गया



थी जिनके लिए ये कुर्बानी
वो खुद में अक्सर लड़ते हैं
जब बात उठे इस देश की फिर 
मतलब की सोच में सड़ते हैं 

जनहित से पहले अपना हित 
ये उसूल अब दिखता है 
है जिसको अधिकार मिला 
वो इतिहास को लिखता है 
ये उसूल भी बदलेगा 
जब नयी सोच का वस्त्र मिले 
अपना ये कल फिर संवरेगा  
जब अधिकारों का अस्त्र मिले 

संग मिलकर कल की सुबह की 
सोच में अब हम पड़ते हैं 
लेकर अधिकारों का तर्कश 
अपने मकसद पे अड़ते हैं 

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