शायद मैं कहीं भटक रहा था
शायद कहीं और निकल चला था
मैं मीलों आगे पहुँच गया
रस्ता तो मेरा वहीँ खड़ा था
ठहरा न लम्हा हाथों में
न वक़्त था कि मैं मुड़ सकूँ
फिर भूल के मैं उस मंज़िल को
ये सोच के आगे बढ़ा था मैं
कि न होगी अब हार मेरी
पर आगे थी जो मुश्किलें
उनसे ही थी यलगार मेरी
उम्मीद जो मन में बाकी थी
उसने अपनी एक राह चुनी
मैंने लाख मनाया पर
फिर भी न उसने मेरी सुनी
शायद कहीं और निकल चला था
मैं मीलों आगे पहुँच गया
रस्ता तो मेरा वहीँ खड़ा था
ठहरा न लम्हा हाथों में
न वक़्त था कि मैं मुड़ सकूँ
वापस ढूढुं उस रस्ते को
जिस रस्ते से फिर जुड़ सकूँ
फिर भूल के मैं उस मंज़िल को
मैं नयी राह अब चुनता हूँ
एक नयी राह अब चलता हूँ
कि न होगी अब हार मेरी
पर आगे थी जो मुश्किलें
उनसे ही थी यलगार मेरी
उम्मीद जो मन में बाकी थी
उसने अपनी एक राह चुनी
मैंने लाख मनाया पर
फिर भी न उसने मेरी सुनी
न है हिसाब क्या खोया मैं
फिर भी उस राह पे चलता हूँ
फिर भी उस राह पे चलता हूँ
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