एक परिंदा अब न रहा
एक परिंदा अब न रहा
जिसने देखे थे ख्वाब कई
जिसकी यादें पीछे रह गयी
जो खुला आसमां समझ के उसने
अपनी एक परवाज़ चुनी
टूट गए अरमां उसके
न किसी ने उसकी आह सुनी
उड़ न सका है वो फिर कभी
जबसे सपने क़ुर्बान हुए
ख्वाब थे जितने आँखों में
सब उससे अन्जान हुए
एक परिंदा अब न रहा
एक परिंदा अब न रहा
जिसने दी सबको सोच नयी
जिसकी यादें कुछ कह गयी
नयी सुबह और नया हो कल
ऐसे कुछ उसके सपने थे
न थे उससे नाते रिश्ते
फिर भी सब उसके अपने थे
पूरे हों अरमान उसके,
ऐसा दिन कभी न आया था
सबको खुशियाँ बांटी उसने,
बदले में कुछ नहीं पाया था
उस एक परिंदे की परवाज़ें
याद सभी को आती हैं
वो सोच कभी न रुक पाए
सदियाँ ये सबक भी पाती हैं
bahut khoob
ReplyDeleteThank u sir :)
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