न राह मिली न रौशनी
हर तरफ है फैला अंधियारा
हर कदम उठाने से पहले
क्यों लगे कि जैसे हूँ हारा
मुश्किलों के हैं पहरे फैले
कर सके इरादे न मैले
हैं तितर बितर सपने जैसे
और शुरू सांझ कि झांकी है
आसार नहीं है अब फिर भी
उम्मीद सुबह की बाकी है
हर कदम पे हैं राहें कई
उलझन ही साथ फिर रहती है
फिर भी न थमे जुनून कभी
जो साथ लहू के बहती है
लगता है रौशनी दूर नहीं
और राह दिखे अब वहीँ कहीं
थोड़ी ही दूर फिर जाना है
इसलिए मुश्किलें डांकी है
फिर नए सफ़र पे चलना है
पर नींद अभी भी बाकी है
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