Wednesday, October 23, 2013

बिछड़ा चेहरा

आगे की होड़ में ही कहीं
एक भाग दौड़ में ही कहीं
मुझे छोड़ गया कब खबर नहीं
फिर ढूँढू क्या उसे वहीं

बिछड़ा चेहरा
बिछड़ा चेहरा
न मिला कभी
बिछड़ा चेहरा

जब निकला मैं अपने घर से
तब से वो मेरे साथ ही था
फिर नए शहर में जब आया
हर किसी को चेहरा रास नहीं
पर इस नादान के सिवा
था कोई भी दूजा पास नहीं

जब मिलता था मक्कारों से
उनको इसने बइमान कहा
पर इस नादान को क्या पता
की उन्हें नापसंद है सच्चाई
फिर भी ये मूरख न सुधरा
इसने हर सच की कीमत चुकाई

मैं लड़ बैठा इस चेहरे से
जिसने न सीखी थी चतुराई
फिर छोड़ के जो ये चला गया
कभी भी इसकी खबर न आयी

बाँध के तानों की गठरी
कहाँ ग़ुम हुआ मेरा चेहरा
फिर मिला नहीं बिछड़ा चेहरा
फिर मिला नहीं बिछड़ा चेहरा

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