यूँ तो आगे बढ़ते रहे
पर राहों की कोई कमी न थी।
साजिश करते तूफानों की
अभी रफ़्तार थमी न थी।
गिरते भी रहे पर न थमे
ये कदम कभी जो न जमे।
न रुके कभी।
चलते रहे।
तपती धूपों में
ढलते रहे।
पर राहों की कोई कमी न थी।
साजिश करते तूफानों की
अभी रफ़्तार थमी न थी।
गिरते भी रहे पर न थमे
ये कदम कभी जो न जमे।
न रुके कभी।
चलते रहे।
तपती धूपों में
ढलते रहे।
मेरे ज़ख्मों पे लहू भी थे
और आँखों में नमी भी थी।
पर जो आगे लेकर चलें
उन मुस्कुराहटों की कमी न थी।
फ़िर हुआ सामना सच से कि
ख़ुद राह भी अपनी चुननी है।
मैं लाख़ करूं फ़रियाद वफ़ा की
न किसी को मेरी सुननी है।
जो रोक सकें मुझको अक्सर
ऐसे अब मोड़ मिलेंगे यहाँ।
कि थाम सकें वो कदम मेरे
ऐसी ही जाल उन्हें बुननी हैं।
संग चलते क़दमों की अक्सर
आहटों की कमी भी थी।
पर कुछ दुआओं में लिपटी
उन राहतों की कमी न थी।
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