उसने था सुना कि पढ़ने को
बस था आखर का ज्ञान जरूरी
पर उसकी छोटी जाति ने ही
रखी उसकी इच्छा ये अधूरी
था उसके घर का सपना कि
वो अपने घर का चिराग बने
पर जाति की अड़चन ने चाहा कि
वो दुनिया पे दाग बने
जब न सच हो सका वो सपना
फिर उसने खुद से पूछा कि
क्या उसकी गलती थी कि
उसने इस घर में जन्म लिया
बस था आखर का ज्ञान जरूरी
पर उसकी छोटी जाति ने ही
रखी उसकी इच्छा ये अधूरी
था उसके घर का सपना कि
वो अपने घर का चिराग बने
पर जाति की अड़चन ने चाहा कि
वो दुनिया पे दाग बने
जब न सच हो सका वो सपना
फिर उसने खुद से पूछा कि
क्या उसकी गलती थी कि
उसने इस घर में जन्म लिया
इसकी श्रद्धा थी मिलने की उसे
जिसे सब पूजा करते थे
पर उस दर पे जाने को तो
सब जाति ही पूछा करते थे
मिल न सका वो कभी उससे
जिसने रचना की श्रृष्टि की
पर क्यों उससे है भेद भाव
न किसी ने इसकी पुष्टि की
कभी सपने में जो प्रभु मिले
उनसे इसने फिर पूछा कि
क्या उसकी गलती थी कि
वो जन्मा उसकी इस श्रिष्टि में
हम सबको पता वो गलत नहीं
फिर क्यों उसको ऐसे देखें कि
जैसे उसने गलती की है
जन्म लेकर के उस जाति में
क्यों उसको मजबूर करें
कि वो सोचे अब ऐसा कि
कि वो सोचे अब ऐसा कि
क्या उसकी गलती थी कि
वो जन्मा हम इंसानों में
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