Friday, November 12, 2010

गाँव शहर सब प्यासा है


The poem depicts the uncertainty of Mansoon in India

गाँव शहर सब प्यासा है। 
दिखती हर ओर निराशा है। 
जब तू बरसे बिन रोके तो,
दिखती बस हरियाली है। 
पुष्प पेड़ सब बड़े हो गए,
हर उपवन में माली है। 
अब धरती उगलेगी सोना,
हम सब की यही आशा है। 

तू हमसे जो रूठ गया,
तो ये धरती अब रोती है। 
बच्चे तो खाते हैं लेकिन,
मां तो भूखी सोती है। 
खेत भी हैं सूखे पड़े,
फ़िर क्यों तेरा तमाशा है। 

इस बरस तो तू ऐसा बरसा,
अपना घर तो टूट गया। 
पानी ही पानी दिखता है,
सब कुछ पीछे छूट गया। 
क्या ये तेरा नया रूप है,
अपनी ये जिज्ञासा है। 

गाँव शहर सब प्यासा है। 
दिखती हर ओर निराशा है। 



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