न्याय की जब भी हो गुहार,
अदालत में उठी उसकी पुकार।
देकर दलीलें बेशुमार,
अभियुक्त पे करता है प्रहार।
बुझने नहीं दी उम्मीद की लौ
पीड़ित के कष्ट का मोचक है।
न्याय सुनिश्चित होगा ही,
जब न्याय के दर अभियोजक है।
कुछ ने है खोई आबरू,
कुछ ने खोई संपत्ति है।
पर बहुतों को पता नहीं हक़ अपना,
बहुतों को नहीं आपत्ति है।
हो कोई पैमाना जुर्म का,
इसने है बरती सख़्ती।
अंधेर नहीं है न्याय के दर,
जनता ये भरोसा है रखती।
कैसे इसने है न्याय दिलाया,
इसका उत्तर अति रोचक है।
सज़ा मुक़र्रर होगी ही,
जब मुस्तैद अभियोजक है।
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