Monday, February 27, 2012
Wednesday, February 22, 2012
कब दूर ये बेनूरी होगी
न दिखता है रस्ता कोई
धुंधला सा यहाँ सवेरा है
है दिशा कहाँ मुझको न पता
ये कहाँ कारवाँ मेरा है
एक रौशनी की है तलाश
कब ये तलाश पूरी होगी
कब बीतेगी ये रात अँधेरी
कब दूर ये बेनूरी होगी
हो घना अँधेरा कितना भी
छटता है सुबह के होने पे
रौशनी का एक ज़र्रा भी
आता है रात के सोने पे
मेरी मंज़िल भी दूर है मुझसे
कब ख़फ़ा भी ये दूरी होगी
कब बीतेगी ये रात अँधेरी
कब दूर ये बेनूरी होगी
Friday, February 17, 2012
Monday, February 13, 2012
एक परिंदा अब न रहा
एक परिंदा अब न रहा
एक परिंदा अब न रहा
जिसने देखे थे ख्वाब कई
जिसकी यादें पीछे रह गयी
जो खुला आसमां समझ के उसने
अपनी एक परवाज़ चुनी
टूट गए अरमां उसके
न किसी ने उसकी आह सुनी
उड़ न सका है वो फिर कभी
जबसे सपने क़ुर्बान हुए
ख्वाब थे जितने आँखों में
सब उससे अन्जान हुए
एक परिंदा अब न रहा
एक परिंदा अब न रहा
जिसने दी सबको सोच नयी
जिसकी यादें कुछ कह गयी
नयी सुबह और नया हो कल
ऐसे कुछ उसके सपने थे
न थे उससे नाते रिश्ते
फिर भी सब उसके अपने थे
पूरे हों अरमान उसके,
ऐसा दिन कभी न आया था
सबको खुशियाँ बांटी उसने,
बदले में कुछ नहीं पाया था
उस एक परिंदे की परवाज़ें
याद सभी को आती हैं
वो सोच कभी न रुक पाए
सदियाँ ये सबक भी पाती हैं
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