ख्वाहिशें कुछ ऐसी हैं,
कि आसमां में मैं उड़ जाऊं,
बादलों को मैं छू लूँ
और इन्द्रधनुष के रंग पाऊं।
आसमान में घर हो मेरा,
परिंदों संग हो वहाँ बसेरा।
उड़ती पतंगों से पूछुंगा
कि तेरी है डोर कहाँ।
आसमान से पूछूँगा मैं,
है तेरा ये छोर कहाँ।
दिन ढलने पर भटक न जाऊं,
इसी बात से डरता हूँ ।
फिर यही सोच कर मैं रह जाऊं,
कि ऐसी ख्वाहिश क्यों करता हूँ।
इस डर से मैं उड़ न पाऊं,
ना ऐसी मजबूरी है।
मंजिल को पाने के लिए,
अपनी तैयारी पूरी है।
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