दर्द की है एक जुबां
ये बहुत कुछ बोलती
अपनी है पहचान क्या
राज़ भी ये खोलती
सामने तो है खड़ा
एक खुला सा आसमां
पर यहाँ उड़ने से पहले
दर्द का है कारवाँ
देख के रौशन जहां
मैं भी तो था खुश कभी
ग़ुम हुयी वो रौशनी
हूँ जिसे ढूढता मैं अभी
है सामने मेरे बसा
एक वो रौशन सा जहां
पर यहाँ जुड़ने से पहले
दर्द का है कारवाँ
न यहाँ मैं जानता
कि क्या मेरी पहचान है
शाख से जैसे गिरे
पत्ते की ना कोई शान है
बन के गुल मैं खिल सकूँ
है कहाँ वो बागबां
ख़त्म हो जाकर जहां
जो दर्द का है कारवाँ
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