जो पर मेरे टूटे हैं अब
बिखरा हुआ लगता है सब।
अलफ़ाज़ भी हैं खो गए,
जिन्हें ढूंढते हैं मेरे लब।
भूला हूँ मैं उस शख़्स को
जो साथ मेरे था यहाँ।
जो मुझमें ही कहीं छुपा था
जिसे मिटा सका न ये जहां।
कोसों आगे मैं बढ़ गया
पीछे हैं फ़िर भी खींचती
मेरी ख़ामियाँ।
मेरी ख़ामियाँ।
क़ाबिलियत जो थी मेरी
उन सब को ये दफ़ना गयी।
नाकामियों के दाग़ को,
हैं जैसे ये अपना गयी।
क्या था हासिल जिसे भुला चुका
है ख़ोज मुझे जिसकी कबसे?
न इल्म कि कब मैं उभरूँगा
मायूसियों के इस रब से?
हूँ मैं भी इनका साझेदार
जिन्हें ढोती हैं मेरे साथ ये
मेरी ख़ामियाँ।
मेरी ख़ामियाँ।
हर बार हूँ मैं ये सोचता,
कि कब ये पीछा छोड़ेंगी ?
बिखरा हूँ मैं तो सदियों से,
मुझे और ये कितना तोड़ेंगी ?
आने वाले हैं नए पल,
ऐसा गुमां हुआ है मुझे।
इस पल में बला ये छूटेगी,
इस सोच ने छुआ है मुझे।
[अ]ग़र इन्हे याद न मैं रहूँ
और ये पीछे न मुड़ी कभी,
ख़ुद से पूछूंगा कहाँ गयी ?
मेरी ख़ामियाँ।
मेरी ख़ामियाँ।
बिखरा हुआ लगता है सब।
अलफ़ाज़ भी हैं खो गए,
जिन्हें ढूंढते हैं मेरे लब।
भूला हूँ मैं उस शख़्स को
जो साथ मेरे था यहाँ।
जो मुझमें ही कहीं छुपा था
जिसे मिटा सका न ये जहां।
कोसों आगे मैं बढ़ गया
पीछे हैं फ़िर भी खींचती
मेरी ख़ामियाँ।
मेरी ख़ामियाँ।
क़ाबिलियत जो थी मेरी
उन सब को ये दफ़ना गयी।
नाकामियों के दाग़ को,
हैं जैसे ये अपना गयी।
क्या था हासिल जिसे भुला चुका
है ख़ोज मुझे जिसकी कबसे?
न इल्म कि कब मैं उभरूँगा
मायूसियों के इस रब से?
हूँ मैं भी इनका साझेदार
जिन्हें ढोती हैं मेरे साथ ये
मेरी ख़ामियाँ।
मेरी ख़ामियाँ।
हर बार हूँ मैं ये सोचता,
कि कब ये पीछा छोड़ेंगी ?
बिखरा हूँ मैं तो सदियों से,
मुझे और ये कितना तोड़ेंगी ?
आने वाले हैं नए पल,
ऐसा गुमां हुआ है मुझे।
इस पल में बला ये छूटेगी,
इस सोच ने छुआ है मुझे।
[अ]ग़र इन्हे याद न मैं रहूँ
और ये पीछे न मुड़ी कभी,
ख़ुद से पूछूंगा कहाँ गयी ?
मेरी ख़ामियाँ।
मेरी ख़ामियाँ।
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