Saturday, February 19, 2011

उनकी खुशियों पे मरता हूँ


उनके ही हाथों में मैंने,
अपनी दो आँखें खोली थी

साथ में उनके कुछ सपने थे,
और ममता कि झोली थी
उनसे ही थी मेरी दिवाली,
और उनसे ही होली थी
भले ही मुझसे कुछ कहा,
पर आँखों में एक बोली थी
वो मेरे भगवान् हैं और मैं,
उन्ही कि पूजा करता हूँ
उन्ही के सपनो से जिंदा मैं,
उनकी खुशियों पे मरता हूँ

दूर जो घर से मैं जाता हूँ,
वो आँखें नहीं सोती हैं
मैं जब मुश्किल में पड़ जाऊं,
फिर वो आँखें रोती हैं
घर वापस फिर कब आएगा,
उनसे यही बातें होती हैं
उनके सपने साकार करूँ,
यही मैं सोचा करता हूँ
उन्ही के सपनो से जिंदा मैं,
उनकी खुशियों पे मरता हूँ
दूर भले में उनसे हूँ,
पर सपनों से नज़दीक हूँ मैं
साथ जो मेरे उनकी दुआएं,
फिर तो यहाँ पे ठीक हूँ मैं
ख़ुशी तो है मंजिल पाने कि,
साथ में दूरी का है ग़म
उनके ख़त जो मिले मुझे तो,
आँखें मेरी होती हैं नम
किस हाल मैं हैं वो पता नहीं,
उनकी परवाह मैं करता हूँ
उन्ही के सपनो से जिंदा मैं,
उनकी खुशियों पे मरता हूँ

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