चाहे परिस्थितियां कितनी भी विकट क्यों न हों, चाहे मनुष्य ने कितनी ही बार पराजय का सामना क्यों न किया हो, साहस ही उसका साथ हमेशा देता है।
पतझड़ तो बीता नहीं अभी।
क्या बहार आएगी कभी ?
पथरीली राहें जो मिली ,
सबने मुँह फेरा तभी।
पैरों में कांटे चुभे हुए ,
मौसम ने भी अब मुँह मोड़ा।
मैं थम गया कुछ क्षण तो क्या,
साहस ने साथ नहीं छोड़ा। "चल उठ जा, अब देर न कर",
रणभूमि से आह्वान है।
दे परिचय उस साहस का,
जिससे बैरी अंजान है।
पर चूक गया मैं लक्ष्य से,
फिर हार ने मुझको तोड़ा ।
समय खड़ा विपरीत तो क्या,
साहस ने साथ नहीं छोड़ा।
हाँ, एक संदेह ने घर किया,
भय भी अब अट्ठहास करे।
"विजय नहीं है अब संभव",
अंतःकरण एहसास करे।
फिर एक पुकार मन में उठी,
टूटे मन को जिसने जोड़ा।
सब छोड़ चले तो क्या हुआ,
साहस ने साथ नहीं छोड़ा।
No comments:
Post a Comment