यह हार भी कुछ कह जाती है
एक आईना सा दिखाती है।
कहीं भी ना रुकना तुझे
सबक यही सिखलाती है।
जो ठहर गया वह टूट गया
मकसद उसका तो छूट गया।
जो रहा न कोई संग तेरे,
यह हौसला ही तेरा साथी है।
सांझ ढली तो क्या हुआ
उम्मीद की लौ न बुझे कभी।
एक नई सहर फिर आएगी
एक नई डगर भी लाएगी।
क्या कसर थी बाकी रह गई
क्या कोशिश में थी कमी कोई
क्यों खुद से ना पूछा कभी
क्यों खुद से न पूछा कभी।
जो हैं लोगों के कहकहे,
अक्सर हम को फुसलाती हैं।
मझधारों से आगे जो बढ़े,
वही दास्तां कहलाती है।
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