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Friday, October 28, 2011

बस तेरा ही होना चाहूँ

है आसमा, तुझसे ये इबादत
तारो के संग हो अपनी शोहबत
तू ऐसी ख्वाइश है मेरी
तू बन चूका है मेरी शिद्दत
आकर मैं तेरी पनाहों में  
तारों सा जुड़ना चाहूँ 
हो तुझमें ही मेरा ये बसेरा
बस इतना मैं तुझसे चाहूँ

सावन के आने से तू

बादलों में यूँ छिप जाता है
आफताब तेरे माथे का
इनमे ही कहीं खो जाता है
इन बादलों के पीछे मैं
तुझमे ही दिखना चाहूँ
उस चंदा से तू मुझे मिला
साथी उसका बनना चाहूँ

रात की काली चादर में
तू ग़ुम है कहाँ न जानू मैं
इमारतों के पीछे है छुपा
ऐसा ही अब मानू मैं
तू है कितना दूर खड़ा
ये दूरी कम करना चाहूँ
थाम लू तेरे आँचल को
बस तेरा ही होना चाहूँ

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