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Sunday, January 01, 2023

भूमिपुत्र

हो तपती धूप, या हो बदरी 

पेट भरे वो हर नगरी 

सींचे वो खेत लहू से भी

भले वो प्यासा हो अध्-गगरी 

आभार है भूमिपुत्र का 

आभार है भूमिपुत्र का 


कभी तूफ़ान था मंडराया 

कभी आकाल का संकट छाया 

फसलें भी बेमौत मरी 

पर उसने धैर्य था दिखलाया

संघर्ष है भूमिपुत्र का 

संघर्ष है भूमिपुत्र का 


चाहे ठिठुरे वो जाड़े में

चाहे वो झुलसे धूप  में

दुलार करे वो फ़सलों को 

ममता के हर रूप में

दुलार है भूमिपुत्र का 

दुलार है भूमिपुत्र का 

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