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Sunday, October 27, 2013

क्रांति की गूँज

अपनी धरती आज़ाद है और
हम आज़ाद मुल्क़ के वासी हैं
फिर अपने दिल में क्यों पलती
एक डर और एक उदासी हैं

कहाँ गयी वो सोच जिसे हम
आधारशिला कहलाते थे
एक नयी सुबह की देख झलकियाँ
सब अपना मन बहलाते थे
कहते थे हम लड़ जायेंगे
वो अस्सी या इक्क्यासी हैं

क्रांति की इस सोच को
तुम जंग न लगने देना कभी
ये तेरा हथियार है राही
ये तेरा हथियार है राही
तोड़ दे तू इस चक्रव्यूह को
क्रांति की है ये गूँज सिपाही

इस भ्रष्ट तन्त्र से मुक्ति पाने को
कुछ और भी सदियाँ प्यासी हैं


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