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Monday, January 02, 2012

जंग न उनपे लग जाए

जिस धड़कन में बहती थी कभी
एक सोच वो क्रांति को लाने की
उसको है अब जंग लगी
उसकी है घड़ी थम जाने की 
हम कोसते हैं उस गद्दी को
जिसपे बैठे हैं भ्रष्ट सभी
जिनके वादे भी अधूरे हैं
पूरे न होंगे वो भी कभी
हैं उम्मीदें उनसे ही जुड़ी
जो बदलें नीव जमाने की
हैं उनकी ही कोशिश पे टिकी
एक सोच सुबह को लाने की
बारूद हैं जिन बंदूकों में
जंग न उनपे लग जाए
जंग न उनपे लग जाए

कुछ सोचते हैं धन दौलत की
कुछ भागते हैं कल के पीछे
कर्म की सीढ़ी छोड़ के सब
क्यों भागते हैं फल के पीछे
न फ़ुरसत है उनको भी अभी
कि याद करें कुर्बानी वो
जिसने सींचा इस धरती को
जिनकी है एक निशानी वो
कुर्बानियों को भूल गए
एक होड़ में आगे जाने की
अब उन्ही से होगा रौशन कल
जो सोचें क्रांति को लाने की
बारूद हैं जिन बंदूकों में
जंग न उनपे लग जाए
जंग न उनपे लग जाए


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