Tuesday, January 01, 2013

ये उमीदें हैं आस मेरी

हर माँ बाप का सपना होता है की उनका लड़का आने वाले कल में उनका नाम रौशन करेगा। ये सपना उसके पैदा होते ही उससे जुड़ जाता है। धीरे धीरे ये उमीदों का रूप लेते हैं। 
ये कविता एक ऐसे परिवार को प्रदर्शित करती है जिसका एकलौता लड़का अपने बाप का सहारा होता है। उस गरीब परिवार की उमीदें उससे जुडी हुयी थी। पर जब उस युवक का सपना सच होने का समय आता है, तब उसके पिताजी ज़िंदगी की आखिरी साँसें गिन रहे होते हैं। और उस युवक की प्रार्थना रहती है की जो सपने इतने सालों बाद सच हुए हैं उनको देखने के लिए उसके पिता को कुछ और साँसों की मोहलत मिल जाए।

आँखों में तेरे हैं सपने 
पर साथ में कुछ मजबूरी है 
उन सपनों की भी है कीमत 
बिन उनके रात अधूरी है 
जो आज है तेरी अन्धकार से 
लथपथ एक कहानी ये 
क्यों छोड़ेगा तू उमीदें 
ये उमीदें हैं आस मेरी 
ये उमीदें हैं आस मेरी

जो आज नहीं मैं कुछ भी हूँ 
कल होगी एक पहचान मेरी 
तेरा अंधियारा दूर करे 
होगी एक ऐसी शान मेरी 
देकर इन आँखों में सपने 
क्यों मुझे अलविदा कहता तू 
ये सब तो एक विरासत है 
जो रहती हैं अब पास मेरी 
जो रहती हैं अब पास मेरी 

बचपन में तेरा था आसरा 
माँ ने भी मुझे दुलारा था 
तब से मैं तेरे इस कल का 
इकलौता नया सहारा था 
जो कल की सुबह आनी है 
वो सब तेरी बदौलत है 
जो साथ नहीं तू इस कल में 
ये सुबह भी है उदास मेरी 
ये सुबह भी है उदास मेरी